आजा कन्हैया

आजा कन्हैया

फिर से ले अवतार मिटे पाप का परचम,
सृष्टि के उत्थान हेतु आया तू हरदम।
आजा फिर से आजा ओ सृष्टि के रचैय्या,
आ रे कन्हैया रे कन्हैया रे कन्हैया….

आके फिर से बांसुरी की तान सुना दे,
संग गोपियों के फिर से आके रास रचा दे।
उपकार कर भक्तों पे आजा बन जा खिवैय्या,
आ रे कन्हैया रे कन्हैया रे कन्हैया…..

जहां नाद धर्म का था आज मौन खड़ा है,
मत पूछना कि कंस बना कौन खड़ा है।
ना पार्थ सा ना भीम सा ना नकुल सा भैया,
आ रे कन्हैया रे कन्हैया रे कन्हैया…..

हर नारी की लाज आज तेरे हाथ है कान्हा,
वो नहीं अबला तू जिनके साथ है कान्हा।
हर द्रोपदी की रक्षा सदा करना कन्हैया,
आ रे कन्हैया रे कन्हैया रे कन्हैया….

गीता का वही ज्ञान हर ह्रदय में जगा दे,
इस तिमिर में दीप्ति की ज्योत जगा दे।
क्यों सत्य पड़ा आज विवश बाणों की शैया,
आ रे कन्हैया रे कन्हैया रे कन्हैया…..

रविंद्र कुमार सिरोही’रवि’

शेयर करें :-

Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on whatsapp
Share on email
Share on facebook

This Post Has One Comment

आपकी प्रतिक्रिया दीजियें

लेखक परिचय

नयी रचनाएँ

फेसबुक पेज

ई-मेल सब्सक्रिप्शन

“लिखो भारत” की सभी पोस्ट सीधे ई-मेल पर प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता यहाँ लिखें।
पूर्णतया निशुल्क है।

रचना भेजिए

यदि आप लेखक या कवि हैं तो अपने विचारों को साहित्य की किसी भी विधा में शब्द दें।
लिखिए और अपनी रचनाएं हमें भेजिए।

आपकी रचनाओं को लिखो भारत देगा नया मुकाम, रचना भेजने के लिए यहाँ क्लिक करें।