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उसे पाने के लिए

“उसे पाने के लिए”

उसे पाने के लिए मै खूब रोया

न जाने कितनी रातेँ आँसू बहाकर सोया

तकिया भीग गया पी – पीकर आँसुओं को

पर उसका ख्वाब मुझसे जुदा ना होया।

(2)

रहता था उसमे खोया – खोया

बंजर दिल में प्यार का हरेक बीज बोया

जमकर सींचा पर दो पत्ते भी ना फूटें

माजरा देख ‘हरीश’ खूब रोया।

(3)

उससे मिलकर खुश रहने लगा था मै

सपने देखने लगा था मै

ज़िन्दगी खुबसूरत हो रही थी

और सँवरने लगा था मै।

(4)

अधुरापन ख़त्म हो गया था मेरा

हरेक पल इम्तेहान का था

बस उसका इम्तिहान ही बाकी था

फिर भी सोना भूल सा गया था मै।

(5)

वो इम्तेहान से पहले ही हार गयी

बहुत कुछ खो चुका था मै

मासूम दिल था वो सो रुलाना नही चाहता था

उसकी और से भी रोने लगा था मै।

– कुमार हरीश


यह रचना मेरे द्वारा स्वरचित व पूर्णतया मौलिक है। इसका सर्वाधिकार मेरे पास सुरक्षित है। आपके सुझावों व विचारों की प्रतीक्षा मे…कुमार हरीश

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This Post Has One Comment

  1. Niraj Srivastava

    बहुत खूब और बेहतरीन पँक्तियाँ हरीश जी। आप अपनी लेखनी को ऐसे ही उड़ान देते रहे।धन्यवाद।

आपकी प्रतिक्रिया दीजियें

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